शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

थम गई सांसे...

गुरुवार का दिन राजस्थान के चिकित्सा व्यवस्था के लहजे से काफी बुरा रहा. सारे सरकारी चिकित्सक हड़ताल पर चले गए. प्रदेश भर में चिकित्सा व्यवस्था ठप हो गई. अस्पतालों में मरीज तड़प रहे थे. भगवन का दूसरा रूप माने जाने वाले चिकित्सक इन सब बातो से परे अपनी जिद पर अड़े रहे. नतीजा ये निकला कि अकेले प्रदेश कि राजधानी जयपुर में ३० ओप्रेतिओं टाले गए. सीकर जिले में तो दिमागी बुखार से तड़पती एक मासूम लड़की ने अपने घर वालो कि गोद में ही दम तोड़ दिया. सिरोही में एक नवजात को मौत होगई.
प्रदेश भर में करीब ९ हजार सरकारी चिकित्सक मौजूद है, लेकिन उनकी मनमर्जी कि कीमत मासूमों को अपनी जान दे कर चुकानी पड़ी. पूरे दिनभर मरीजों के परिजनों कि जान पर बनी रही.वे मदद के लिए यहाँ से वहां बदहवास से घूमते रहे, लेकिन सिर्फ निराशा ही उनके हाथ लगी.
हालाँकि, शुक्रवार को ये चिकित्सक काम पर लौटे आये, लेकिन उनकी मांगे अगर पूरी नहीं हुई तो वे १२ दिन बाद फिर हड़ताल पर चले जायेगे. चिकित्सक चाहते हैं कि उनका वेतनमान केन्द्र के वेतनमान के सामान हो. चिकित्सा सेवाओं को पंचायतीराज विभाग के अधीन नहीं रखा जाए. अस्पतालों का सञ्चालन एक ही पारी में किया जाए और अस्पताल परिसर में चिकितासको के साथ मारपीट को गैर जमानती रखा जाए.
अब इनकी मांगों कि लिस्ट तो काफी लम्बी है और सभी मांगें भी उचित नहीं है. कायदे कानून के हिसाब से चिकित्सक उस मरीज के इलाज से मन नहीं कर सकते जिसे तुरंत इलाज कि जरुरत है. फिर भी इनकी मनमानी जारी है. सुप्रेम कोर्ट भी इस तरह के गैर-ज़िम्मेदारान रवैये के लिए चिकित्सक वर्ग को फटकार लगा चुकी है, लेकिन फिर भी वही बुरा हाल है.
चिकित्सकों को हड़ताल के अलावा अपनी मांगे मनवाने का कोई और रास्ता निकालना चाहिए, वरना उन्हें भगवन को अहौदा देने वाले मरीज उन्हें किसी हत्यारे से कम नहीं मानेंगे.

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