बुधवार, 22 जून 2011

हक़ कि लड़ाई जारी रहेगी

महिला आरक्षण बिल बार फिर से झमेले में पड़ गया है. लगता है देश के ये राजनीतिक दल इसे यूँ ही पारित नहीं होने देंगे. एक बार फिर से लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार कि कोशिशों पर पानी फिर गया. बुधवार को हुई बैठक बेनतीजा रही. सपा और बसपा ने जहाँ बैठक का विरोध किया वहीँ राजद और शिवसेना के अड़ियल रुख के कारण बिल पर सहमती बनाने कि पहल नाकाम रही. कुल मिलाकर लगता है कि हर कोई अब भी महिलाओं को घर कि चौखट में ही बांधे रखना चाहता हैं. पहले बिल को लोकसभा में पारित करवाने के नाम पर खूब हंगामा किया गया और लगता है अब बारी राज्यसभा कि है. राजनीतिक दलों को महिलाओं के लिए टिकट आरक्षित करना चाहिए, इसको लेकर हर दल अपनी अलग अलग राय रखता है. ऐसे में लगता है आगे विचार विमर्श जारी रखना होगा. संसद के मानसून सत्र से पहले एक और बैठक बुलाई जायेगी. बिल के मौजूदा प्रारूप पर सवाल उठाते हुए जो दल कोटे के भीतर कोटे ही हिमायत कर रहे है वो शायद भूल रहे हैं कि अब तक जो महिलाये राजनीति में पहुंची हैं उन्हें तो कोई आरक्षण नहीं मिला है. महिला में इतनी ताकत और ज़ज्बा है कि उसे इसकी जरुरत भी नहीं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि हम अपने हक़ को पाने से पीछे रह जाएँ.

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