मंगलवार, 28 जून 2011

जिंदगी कैसी है पहेली?

ज़िन्दगी एक अजीब सी पहेली बनकर रह गई है, बिल्कुल मेरी समझ से परे. हम चाहे किसी को कितना भी समझने का दावा कर ले, लेकिन शायद ये दावे खोखले ही रह जाते हैं. रिश्ता कितना भी गहरा क्यों ना हो उसमे भी उलझने आ ही जाती हैं. हम सोचते है कि जिसे हम सब से ज्यादा प्यार करते हैं वही इन्सान हमें शायद दुनिया में सबसे अच्छी तरह समझता है...लेकिन शायद ये सब बातें बेमानी है.
कोई किसी को नहीं समझ पाया है इस दुनिया में. हर इन्सान मौसम कि तरह रंग बदलने लगा है. किसी कि फितरत पहचानना बहुत मुश्किल काम है. किसी ने कहा था मुझे कि संवाद से सारी समस्याएँ हल हो जाती है, लेकिन संवाद तो उसी के साथ किया जा सकता है ना जो सवालों के जवाब देने को राजी हो. ख़ामोशी कि चादर ओढ़ ले उससे भला संवाद कैसे वाजिब है?
पहले लगता था कि समय हर परेशानी का हल निकाल देता है, लेकिन अब ये बात भी बेमानी लगने लगी है. समय के साथ तो बिना बोले समस्या और भी गहरी हो जाती है. ये भी एक अजीब ही दास्ताँ है कि इन्सान जिससे सबसे ज्यादा प्यार करता है, उसे उसी से सबसे ज्यादा तकलीफ भी मिलती है. भला दो लोग ये कैसे भूल जाते हैं कि उनका रिश्ता कोई कागज को खिलौना नहीं है जिसे जब चाहा नया आकर दे दिया जाए. रिश्ते बदलने पर मन को कितनी तकलीफ होती है, इसका अंदाज़ा वही लगा सकता है जो इसे महसूस कर चुका हो.
आप किसी से बहुत कुछ कहना चाहते हैं, लेकिन उसे आपकी कोई बात नहीं सुननी. आप ख़ामोशी में अपनी बात बयाँ करने कि कोशिश कर रहे हैं, लेकिन सामने वाले ने तो आँखे ही मूंद ली है. फिर भला कैसे हो इस अनजानी परेशानी का हल?
सवालों का बवंडर उठा है मन में, लेकिन इन्हें शांत करने वाला बेफिक्र होकर बैठा है...

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