शनिवार, 25 जून 2011

हाय रे मंहगाई ...

''सखी सैया तो खूब ही कमात है मंहगाई दायाँ खाए जात है ...'' फिल्म ''पीपली लाइव'' का ये गाना आज के परिपेक्ष्य में कितना सार्धक है. हाय रे मंहगाई, लगता है अब तो तू जान लेकर ही रहेगी. क्या होगा आमजन का? हम भला कितनी ही चिंता में मर जाए, लेकिन कांग्रेस सरकार के कान पर तो जू भी नहीं रेंगने वाली. भला हो, मैडम सोनिया का जिन्होंने हमारे मुंह से निवाला छिनने कि पूरी तैयारी कर ली है. पिछले चार सालो में मंहगाई ३० फीसदी बढ़ चुकी है.
ये तो सभी जानते हैं कि प्याज काटने से आँखों में आंसू आते हैं, लेकिन लगता है कि अब तो गैस का चूहला चालू करने से पहले भी यही हाल होगा. जब सरकार सत्ता में आई थी तब पेट्रोल के दाम ३५ रुपये था और अब ६४ रुपये. समझ नहीं आता जब रिज़र्वे बैंक मंहगाई घटाने के तरीके बता रहा है तो भला ये सरकार क्यों नहीं इन्हें अपना रही? सिर्फ कुछ बड़ी कंपनियों को फायदा पहुँचाने के लिए आमजन के साथ नाइंसाफी हो रही है. पूरे देश में जनता सडको पर उतर कर बढे दामो का विरोध कर रही है, लेकिन बेशर्म सरकार को देखिये कि उनकी तरफ से अभी तक कोई सतेटमेंट नहीं आया है.
मानसून तो अभी पूरी तरह देश में नहीं आया है, लेकिन उससे पहले ही देश में मंहगाई का बादल ज़रूर फट गया है. सरकार ने आम आदमी कि कमर तो तोड़ ही दी है, साथ ही साथ परिवहन भाडा और सब्जियों के दामो में ५ से १० फीसदी कि बढोतरी ने जनता को दोहरी मार दी है.सरकार जहा बढ़ते हुए राजस्व से खुश है, वही उन्हें ये भी सोचना चाहिए कि वो सिर्फ कुछ चुनिन्दा लोगो के लिए करोड़ों लोगे के साथ अन्याय कर रही है. आज ही एक अख़बार में पढ़ा कि वर्ष २०१० में देश में करोड़पतियों कि संख्या १ लाख ५३ हजार तक पहुच गई थी, लेकिन ये तो हमारे देश का एक छोटा सा ही हिस्सा है. देश के करोड़ों परिवार तो आज मंहगाई कि तेज रफ़्तार का शिकार बन रहे है. वैसे अन्ना हजारे और बाबा रामदेव तो भ्रष्टाचार को मिठाने के लिए अनशन पर बैठे थे, लेकिन अगर इसी रफ़्तार से मंहगाई बढती रही तो गरीबी से जनता वैसे ही अनशन पर हमेश के लिए बैठ जाएगी.

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